शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

मेरा नहीं तुम्हें था गैरों के खोने का ग़म ।

मेरा  नहीं  तुम्हें   था   गैरों  के  खोने  का  ग़म ।
शायद  मेरा  प्यार   कहीं   पड़  गया  है  कम ।।
देखा  तुझे   रोमांस  करते   गैरों  के  साथ  में ।
नशें फटीं, उबाल आया, हुआ ख़ून मेरा गरम ।।
ज़िस्म   तुम्हारा   है   या   कोई   धरम   शाला ।
कितनी  बेशरम  हो  तुम्हें  आती  नहीं  शरम ।।
मैं बुरा बन गया हूँ  तेरा ऐतबार करते - करते ।
ये  सपना  रह  गया अब  बहुत  अच्छे  थे हम ।।
ज़िन्दगी   से    तुम्हारी   गर    मैं   चला   गया ।
करके  याद  हमको  तुम  रोते रहोगे  हरदम ।।
तुम  जान  हमारी  थीं   तुम  जान  हमारी  हो ।
मुझे लगता बुरा बहुत है  ये सब छोड़ो सनम ।।

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