रविवार, 22 फ़रवरी 2015

उससे हमारा रिश्ता कुछ अज़ीब सा है।

उससे    हमारा    रिश्ता   कुछ   अज़ीब   सा   है।
मेरी   ज़िन्दगी   का  लगता   वो  नसीब  सा  है।।
बहुत सोचता है इज़हार - ऐ - मोहब्बत से पहले।
प्यार    देने    में    वो    थोडा    गरीब    सा   है।।
दूरी   इतनी   कि   मिल   पाना   आसाँ  नहीं  है।
फिर    भी   वो   मेरे   दिल   के   करीब   सा   है।।
उसके   खो   जाने   का   डर   रहता   है   हमेशा।
हर    शख्स    मुझे    लगता    रक़ीब    सा    है।।
मै  मौला  की  इनायत  का  तलबगार  नहीं  हूँ।
मेरा     प्यार     मेरे    लिये     हबीब    सा    है।।

2 टिप्‍पणियां:

  1. दूरी इतनी कि मिल पाना आसाँ नहीं है।
    फिर भी वो मेरे दिल के करीब सा है ..
    जिससे प्रेम होता है वो दूर होते हुए भी दिल के करीब होता है ... अच्छा शेर ...

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  2. दिगम्बर जी मैं आपका तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूँ आप जितने अच्छे लेखक हैं उतने अच्छे पाठक भी हैं

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