शनिवार, 20 दिसंबर 2014

ज़िन्दगी में दर्द कितना आज हमने जाना है ।

ज़िन्दगी में दर्द  कितना  आज हमने जाना है ।
दिया उसने दर्द जिसको अपना हमने माना है ।।
दर्द के  काफिलों ने आहत किया ज़िन्दगी को ।
लगाया  गले से  फिर  मौत  ने ज़िन्दगी  को ।।
मौत  से  तो  ज़िन्दगी  का  रिश्ता  पुराना  है ।
ज़िन्दगी में दर्द कितना आज हमने जाना है ।।
दर्द     में     अकेले     लहद     में     अकेले ।
आना    है    अकेले    जाना    भी    अकेले ।।
देंगे  साथ  हमसफ़र  ये  तो  एक  बहाना  है ।
ज़िन्दगी में दर्द कितना आज हमने जाना है ।।
ज़िन्दगी    जीने    का    अब    नहीं    इरादा ।
करके   आये   खुदा   से   हम   एक   वादा ।।
वादा      हमको      अपना      निभाना     है ।
ज़िन्दगी में दर्द कितना आज हमने जाना है ।।
भटकते    हुए    को    मिल    जाये    कारवाँ । 
फँस जाये पेड़ पर  या हासिल  करे  आसमां ।।
टूटी  पतंग  का  न  जाने  क्या  ठिकाना  है ।
ज़िन्दगी में दर्द कितना आज हमने जाना है ।।
सोचते  हैं  अब  उनका  कौन  है  नया  घर ।
आवाज़ दिल से क्यों  निकली  ये  "सागर" ।।
न    ही   अपना    वो    न    ही    बेगाना    है ।
ज़िन्दगी में दर्द कितना आज हमने जाना है ।।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

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    1. तहे दिल से शुक्रिया संजय जी। ऐसी कोई बात नहीं हैं, समय नहीं निकल पाता है।

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