मेरा नहीं तुम्हें था गैरों के खोने का ग़म ।
शायद मेरा प्यार कहीं पड़ गया है कम ।।देखा तुझे रोमांस करते गैरों के साथ में ।
नशें फटीं, उबाल आया, हुआ ख़ून मेरा गरम ।।
ज़िस्म तुम्हारा है या कोई धरम शाला ।
कितनी बेशरम हो तुम्हें आती नहीं शरम ।।
मैं बुरा बन गया हूँ तेरा ऐतबार करते - करते ।
ये सपना रह गया अब बहुत अच्छे थे हम ।।
ज़िन्दगी से तुम्हारी गर मैं चला गया ।
करके याद हमको तुम रोते रहोगे हरदम ।।
तुम जान हमारी थीं तुम जान हमारी हो ।
मुझे लगता बुरा बहुत है ये सब छोड़ो सनम ।।