गुरुवार, 30 अक्तूबर 2014

शौक था रुलाने का

शौक  था  रुलाने  का  तो  इतना  हँसाया  क्यों ?
नहीं करना था प्यार तो अहसास दिलाया क्यों ?
आये  तो थे  तुम मेरी  ज़िंदगी में  बिना बताये।
जब तुझे जाना ही था छोड़कर तो बताया क्यों ?

बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

हम जायेंगे जब इस क़दर जायेंगे

चित्र स्रोत - गूगल
हम तन्हा कभी जब सफ़र जायेंगे ।
नहीं मानेंगे साथ रहगुज़र जायेंगे ।।
ठुकरा  के  तुम  जो  चले  जाओगे ।
हम माला  के जैसे  बिखर जायेंगे ।।
दर्द  देंगे  कभी  तो  है  वादा हमारा ।
आँसू बनकर के दिल से उतर जायेंगे ।।
बस इनायत के भूखे है हम आपके ।
तुम  दे दो थोड़ा  प्यार  तर जायेंगे ।।
सबको मालूम है हम हैं तुम्हारे सनम ।
अब निकाला तो हम किसके घर जायेंगे ।।
तुम  ढूंढ़ते  रहोगे  हम  मिलेंगे  नहीं ।
हम जायेंगे  जब  इस  क़दर जायेंगे ।।

मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014

इस तरह से रोने का मुझे शौक न था

क्यों दिया साथ जब साथ छोड़ना था ?
पकड़ा क्यों हाथ जब हाथ छोड़ना था ?
टूटे   दिल   में   छुपाऊँगा  कब   तक ।
दिल में क्यों बस गए जब दिल तोड़ना था ?
याद तुम्हारी हमको  यहाँ खींच लायी ।
क्यों बुलाया हमको जब नहीं बोलना था ?
तुमने भी किया हमसे बेपनाह प्यार था ।
क्यों  किया  याद  जब  हमें  भूलना  था ?
आँखों को आँसुओं का तोहफा दिया तुमने ।
इस  तरह से रोने का  मुझे  शौक  न  था ।।

सोमवार, 27 अक्तूबर 2014

तुझे मेरे आँसुओं की कसम ।

चित्र स्रोत - गूगल
तुझे   मेरे  आँसुओं  की   कसम ।
मुझे  माफ़  कर  दो  ओ  सनम ।।
कभी दिल न दुखाऊँगा वादा मेरा ।
मुझे   तेरे   गेसुओं   की   कसम ।।
जल्दी आता समझ नहीं नादान हूँ ।
मैं कैसा भी हूँ लेकिन दिल है नरम ।।
मैं कितना हूँ  ढीठ तुम सोचो भले ।
तुमने  ही   बनाया  मुझे  बेशरम ।।
अलग तुमसे रहूँ न ऐसी देना सजा ।
तुम्हारे बिना नहीं रह सकते हम ।।
तुमने  ही  कहा  था ज़रा याद करो ।
छोड़कर के तुम्हें नहीं जायेंगे हम ।।

रविवार, 26 अक्तूबर 2014

**** ***** ****

मैंने हँसाने का वादा किया था पर आज रुला दिया उसे ।
वो   तो   मेरी    मजबूरी   को  बेवफ़ाई    ही   समझेंगे ।।

शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

न पढ़े कोई ग़ज़ल हमारी, ग़ज़ल कुँवारी लगती है।

जब प्यार तुम्हें कोई करता है, दुनियाँ प्यारी लगती है।
छोड़ के जाये जब बीच में कोई, जीस्त भारी लगती है।।
रहे उम्र भर लड़की कुँवारी, सवाल ज़माना करता है।
न पढ़े कोई ग़ज़ल हमारी, ग़ज़ल कुँवारी लगती है।।
जिसकी याद में दिल धड़के और जिसके लिए मैं ज़िंदा हूँ।
कोई तो समझा दे मुझको, वो कौन हमारी लगती है।।
दोष नहीं था उसका यहाँ पर, वक़्त के आगे थी मजबूर।
उतरा चेहरा देख के उसका, वो बेचारी लगती है।।
सोया नहीं हूँ कई रातों से, उसकी याद में जागा हूँ।
सोना चाहता हूँ जी भर के, हमको खुमारी लगती है।।
जब भी तन्हा होता हूँ, डूबा खयालों में रहता हूँ।
हमको बिल्कुल अच्छी नहीं, दुनियाँ दारी लगती है।।
होना चाहती है हमसे दूर, फिर भी हमें वो चाहती है।
दिल के अपने आगे वो, हमको हारी लगती है।।

शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

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प्यार   करने   वाला   बेखबर   होता   है ।
न बदनामी का उसे न मौत का डर होता है ।।
सारी दुनियाँ से बगावत कर सकता है वो ।
चाहने  वाला  उसके  साथ  अगर होता है ।।

हमने किया प्यार कोई ख़ता तो नही

हमने  किया  प्यार  कोई  ख़ता  तो  नही।
तुम्हारे  बारे  में   हमको  पता  भी  नहीं।।
हमको लगता जैसा क्या तुमको भी लगता ?
तुम्हारे बिना दिल मेरा अब लगता भी नहीं।।
दिल  के  दर्द  को  कलम  से  बयां  करते।
कैसे  लिखे  ग़ज़ल  हम  'अता'  तो  नहीं।।
समझता  नहीं  कोई  दर्द - ए - दिल मेरा।
कैसे  सुनायें  दुखड़ा  हम  'लता'  भी  नहीं।।
पहले किसी की दिल को  फ़िकर नहीं थी।
जब से हुआ दीवाना दिल हँसता भी नहीं।।
कहता  है  मन  मेरा  तूँ  उसको  भूल  जा।
मन का इस पे कोई जोर चलता भी नहीं।।

गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

***** **** *****

आता है त्यौहार लेकर दिन खुशहाली का ।
बख़्शे  तुम्हें  ख़ुदा  मौसम  मनाली  का ।।
आशमां के सितारे रोशन करें ज़िंदगी को ।
मुबारक हो सबको  त्यौहार दिवाली का ।।

बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

बेशरम इतने तुम क्यों हुए 'सागर'

सनम बेवफ़ा हो तो जियें किस की ख़ातिर ।
न पढ़े ग़ज़ल कोई तो लिखें किस की ख़ातिर ।।
मेरे  रोने  से  गर  कोई   हँस  रहा  हो  तो ।
उसको  रुला  कर  हँसे  किस  की  ख़ातिर ।।
परवाना   जलता   है   शमां   की   चाहत   में ।
न चाहा किसी ने हमें हम जलें किस की ख़ातिर ।।
लोग पीते हैं ज़माने में अपनों को भुलाने के लिए ।
मेरा अपना नहीं कोई हम पियें किस की ख़ातिर ।।
बेशरम   इतने   तुम   क्यों   हुए   'सागर' ।
तुम्हें  चाहने  वाले  और  भी  थे  आख़िर ।।

बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

अपनी तुम भेजो तस्वीर ।।

मेरे दिल  में  होती पीर । अपनी  तुम  भेजो तस्वीर ।।
मेरे  घर से  काफी दूरी । न मिल  पाने की  मजबूरी ।।
है  बात  बड़ी  गम्भीर । अपनी  तुम  भेजो  तस्वीर ।।
तेरे एक पल का एहसास । ले जाये खुशियों के पास ।।
ये कभी  लगे  कश्मीर । अपनी  तुम  भेजो  तस्वीर ।।
मैं  हँसता  हूँ तब से । मुझको  मिले  हो तुम जब से ।।
मेरी तुम लगते तक़दीर । अपनी  तुम भेजो तस्वीर ।।
मैं दुनियाँ में  आया आखिर । तेरी ख़ुशी की ख़ातिर ।।
मैं  करूँगा  हर  तदबीर । अपनी  तुम  भेजो तस्वीर ।।

सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

***** ***** *****

ज़माने ने हमको जीना सिखा दिया।
किसी बेवफा ने पीना सिखा दिया।।
हमने सर रखा मोहम्मद के दर पे।
मोहम्मद ने हमको मदीना दिखा दिया।।

रविवार, 5 अक्तूबर 2014

शरमाना हमने कम कर दिया ।

बेशरम - बेशरम - बेशरम कर दिया ।
इस मोहब्बत ने हमको बेशरम कर दिया ।।
खुलेआम उनसे हम मिलने लगे ।
बहारों में फूल अब खिलने लगे ।।
उसके बिना कहीं भी दिल न लगे ।
दिल  में  वो  जब  से  रहने  लगे ।।
दुनियाँ  वाले  हमसे  जलने  लगे,
ज़माने ने मुझ पर सितम कर दिया ।
बेशरम - बेशरम - बेशरम कर दिया ।।
दिल  की  बातें  हम  कह  न  पाये ।
वो  सामने  आये  हम  शरमाये ।।
खुशियों में ताला कहीं लग न जाये ।
यह  सोचकर  के  हम  घबराये ।।
फ़िराको  में  वो  बहुत  याद  आये,
शरमाना  हमने  कम  कर  दिया ।
बेशरम - बेशरम - बेशरम कर दिया ।।
इस मोहब्बत ने हमको बेशरम कर दिया ।।

शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014

अपने मोहब्बत का इम्तिहान 'सागर' मैं और कैसे देता

हमें  लगा  की  हम  ही  उन्हें  देख  रहे  थे ।
मगर छुप - छुप कर वो भी हमे देख रहे थे ।।
एक नज़र में ही उसने मुझे कर दिया दिया पागल ।
हम  तो  उसकी  नज़र  का  असर  देख  रहे  थे ।।
कैसे  कह  दूँ  की  मेरा  अपना  नहीं  है  कोई ।
मुझे अपना सा लगा वो इस क़दर देख रहे थे ।।
छोड़ा  है  साथ  उसने  साया  छोड़ता  नहीं ।
वो उधर नज़र आया हम जिधर देख रहे थे ।।
मुझे लगा जैसे मेरा जनाजा निकल रहा हो ।
जब सामने से अपने उसकी निकलती डोली देख रहे थे ।।
अपने मोहब्बत का इम्तिहान 'सागर' मैं और कैसे देता ।
जिसने पलटकर नहीं देखा हम उसकी धूल देख रहे थे ।।

गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

गाँव

नेचर का नज़ारा हमने देखा है गाँव में।
आज फिर से प्यार महबूब की देखा निगाहों में।।
मिला नहीं सुकून वो आकर के शहर में।
मिलता था जो गाँव के पेड़ो की छाँव में।।
मैं जिस खुशी के लिए भटका हूँ दर - बदर।
ख़ुशी मिली वो मुझको यारों की बाँहों में।।
शौहरत हासिल करने हम शहर चले आये।
क्यों भूल गए सब मिलता माँ की दुवाओं में।।
शहर वालों को ऐतबार नहीं होता अपनों पर।
गाँव में बनते रिश्ते चलते -  चलते राहों में।।
यहाँ खाना पानी हवा के लिए करते बहुत मशक्कत।
ये सब उपलब्ध होता आसानी से गाँव में।।
ज़मीन पर दीदार ज़न्नत का होता है वहाँ।
नाँचे  मयूर  जहाँ  अपनी  अदाओं  में।।