मेरे   दिल  के  वो  टुकड़े   हजार  कर   गयी ।
मेरी   ज़िन्दगी  में  घुस  के  अत्याचार   गयी ।।
अब तो ज़िन्दगी का आखिरी मेला भी ख़तम हुआ ।
आज डोली उसकी घर को मेरे पार कर गयी ।।
ज़िन्दगी   ने    जिससे    भी   की    बेवफाई ।
मौत  की   सहेली  उससे   प्यार   कर   गयी ।।
उसका  मासूम  चेहरा  मैं  कैसे  भूल  सकता ।
उसकी  तस्वीर  जहन  में  आकार  कर  गयी ।।
भले  किसी  और  का  दिल  जीत  लिया  हो ।
मेरे    दिल   से   तो   वो   हार    कर    गयी ।।
ये मोहब्बत का कैसा तोहफा सौगात में दिया ।
वो   दुश्मन   भी   मेरे   दो   चार  कर   गयी ।।
मेरे   उपापचय   का   न   कोई   उपचार   है ।
मेरा   हमदर्द    बनकर    बीमार   कर   गयी ।।
कुछ  दिन  ही  सही  लेकिन  प्यार  तो किया ।
एक  सपना  था  मेरा  वो  साकार  कर गयी ।।
 
 
उम्दा..
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’रंगमंच के मुगलेआज़म को याद करते हुए - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंसम्मान देने के लिये शुक्रिया सेंगर जी
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