ठोकर इंसान को चलना सिखाती है ।
पल भर के लिए आकर ख़ुशी हँसना सिखाती है ।।
बेशुमार नाज़ करती ज़िंदगी खुद पर ।
मौत ज़िंदगी को डरना सिखाती है ।।
तुमको समझ नहीं सकता जिसने किया नहीं है प्यार ।
मोहब्बत भावनाओं की क़दर करना सिखाती है ।।
लिखता है सुनकर शायर ज़िंदगी का तजुर्बा ।
ये ज़िंदगी कदम - कदम नगमा सुनाती है ।।
हम तो शुमार थे इंसानों की भीड़ में ।
मेरे दर्द की इन्तेहाँ मुझे लिखना सिखाती है ।।
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