सनम बेवफ़ा हो तो जियें किस की ख़ातिर ।
न पढ़े ग़ज़ल कोई तो लिखें किस की ख़ातिर ।।
मेरे रोने से गर कोई हँस रहा हो तो ।
उसको रुला कर हँसे किस की ख़ातिर ।।
परवाना जलता है शमां की चाहत में ।
न चाहा किसी ने हमें हम जलें किस की ख़ातिर ।।
लोग पीते हैं ज़माने में अपनों को भुलाने के लिए ।
मेरा अपना नहीं कोई हम पियें किस की ख़ातिर ।।
बेशरम इतने तुम क्यों हुए 'सागर' ।
तुम्हें चाहने वाले और भी थे आख़िर ।।
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