हमें लगा की हम ही उन्हें देख रहे थे ।
मगर छुप - छुप कर वो भी हमे देख रहे थे ।।
एक नज़र में ही उसने मुझे कर दिया दिया पागल ।
हम तो उसकी नज़र का असर देख रहे थे ।।
कैसे कह दूँ की मेरा अपना नहीं है कोई ।
मुझे अपना सा लगा वो इस क़दर देख रहे थे ।।
छोड़ा है साथ उसने साया छोड़ता नहीं ।
वो उधर नज़र आया हम जिधर देख रहे थे ।।
मुझे लगा जैसे मेरा जनाजा निकल रहा हो ।
जब सामने से अपने उसकी निकलती डोली देख रहे थे ।।
अपने मोहब्बत का इम्तिहान 'सागर' मैं और कैसे देता ।
जिसने पलटकर नहीं देखा हम उसकी धूल देख रहे थे ।।
नमस्कार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
आपका ब्लॉग देखकर अच्छा लगा !
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