रविवार, 18 जनवरी 2015

हर्फ़ रोने लगते हैं मैं जब भी रोता हूँ ।

मालूम  है  वो  हमारी   किस्मत  में  नहीं  है ।
फिर भी उस से दूर होने को दिल नहीं करता ।।

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कभी      ख़्वाहिश      थी     उसे     पाने     की ।
अब तो लगता है वो मेरा बना रहे वही काफी है ।।

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हर्फ़  रोने  लगते  हैं  मैं  जब  भी  रोता  हूँ ।
सूखे  पेड़   मेरी   कहानी   बयाँ   करते  हैं ।।

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हम अपने  मोहब्बत  की  नुमाइश  नहीं कर पाते ।
और  वो  समझते  हैं  कि  हम  प्यार  नहीं  करते ।।

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6 टिप्‍पणियां:

  1. हम अपने मोहब्बत की नुमाइश नहीं कर पाते ।
    और वो समझते हैं कि हम प्यार नहीं करते ।।
    ..बहुत खूब! प्यार दोनों ओर बराबर हो तो प्यार में मन में बेवजह डर पैदा नहीं होता ...

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  2. हम अपने मोहब्बत की नुमाइश नहीं कर पाते ।
    और वो समझते हैं कि हम प्यार नहीं करते ।।
    क्या बात है ... आज तो सच में प्रेम दिखाना भी पड़ता है ... हर शेर लाजवाब है ...

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    1. हाँ दिगम्बर जी प्यार का इज़हार करना जरुरी हो गया अब तो। लोग समझते ही नहीं भावनाओं को।

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