सोचा नहीं कुछ बस उन्हें चाहते रहे ।
झूठे सपनों में वो हमारे आते रहे ।।
कितना पत्थर है वो जो हमारी याद न आयी।
उनके इन्तज़ार में हम राह ताकते रहे ।।
खुदा भी बहरा हो गया मेरी फ़रियाद न सुनी ।
हर फ़रियाद में हम उन्हें माँगते रहे ।।
सदियों के बाद आये जब किसी की तलाश में ।
मंजिल का तो पता नहीं बस रास्ते रहे ।।
हक़ीक़त तो ये है कि वो भी हमें चाहती थी ।
मगर उसके लवों से यह सुनने को तरसते रहे ।।
फ़िराक का हर एक पल हमें दर्द देता रहा ।
फिर भी हमारे ज़ख्म तो हँसते रहे ।।
यादों को उनकी हमने महफूज़ रखा ।
अरमानों के महल दिल में बनाते रहे ।।
झूठे सपनों में वो हमारे आते रहे ।।
कितना पत्थर है वो जो हमारी याद न आयी।
उनके इन्तज़ार में हम राह ताकते रहे ।।
खुदा भी बहरा हो गया मेरी फ़रियाद न सुनी ।
हर फ़रियाद में हम उन्हें माँगते रहे ।।
सदियों के बाद आये जब किसी की तलाश में ।
मंजिल का तो पता नहीं बस रास्ते रहे ।।
हक़ीक़त तो ये है कि वो भी हमें चाहती थी ।
मगर उसके लवों से यह सुनने को तरसते रहे ।।
फ़िराक का हर एक पल हमें दर्द देता रहा ।
फिर भी हमारे ज़ख्म तो हँसते रहे ।।
यादों को उनकी हमने महफूज़ रखा ।
अरमानों के महल दिल में बनाते रहे ।।
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