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चित्र स्रोत - गूगल |
जोड़ते न दिल तो टूटा न होता ।
पकड़ते न दामन तो छूटा न होता ।।
तक़दीर मेरी गर अमीर होती ।
सारी दुनियाँ की मुझपे जागीर होती ।।
तो मेरा यार मुझसे रूठा न होता ।
जोड़ते न दिल तो टूटा न होता ।।
अपने महबूब से न कोई दूर होता ।
शीशे जैसा दिल था न वो चूर होता ।।
दीवानों से काम कोई अनूठा न होता ।
जोड़ते न दिल तो टूटा न होता ।।
गर किसी पर भी न ऐतबार करते ।
तन्हा रह लेते यूँ न प्यार करते ।।
तो मेरा घर अपनों ने लूटा न होता ।
जोड़ते न दिल तो टूटा न होता ।।
पकड़ते न दामन तो छूटा न होता ।।
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (07.11.2014) को "पैगाम सद्भाव का" (चर्चा अंक-1790)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंजरूर।
हटाएंमेरा ब्लॉग विजिट करने के लिए धन्यवाद।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ! प्रतिभा जी।
हटाएंBehad umda gazal ..... !!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद परी जी ! आपने मेरे गीत की तारीफ़ करके मेरा हौसला बढ़ाया।
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